गुरुवार, 10 दिसंबर 2020

राजस्थान के सभी तालाब व बावड़िये

 राजस्थान के सभी तालाब एवं बावड़ियें

बावड़ी राजस्थान के जल संरक्षण का परंपरागत स्रोत रहा है आज अपन राजस्थान के अंदर सभी बावड़ी व उनके स्थान के बारे में चर्चा करेंगे:- 

 



चांद बावड़ी - आभानेरी (दौसा)
रानी जी की बावड़ी - बूंदी
बावल देवी की बावड़ी - बूंदी 
सेठ जी का चौक - बूंदी
काकी जी की बावड़ी - इंदरगढ़ (बूंदी)
नौ चौकी बावड़ी - राजसमंद
त्रिमुखी बावड़ी - उदयपुर
वीरू पुरी बावड़ी - उदयपुर
एक चट्टान बावड़ी या रावण की चंवरी - मंडोर (जोधपुर) मेड़तणी जी की बावड़ी - झुंझुनू
नौलखा बावड़ी - डूंगरपुर
चमना बावड़ी - भीलवाड़ा
लवाण की बावड़ी या डकनिया की बावड़ी - लवाण (दौसा) नादर जी की बावड़ी - जोधपुर 
बीकाजी की बावड़ी - अजमेर
जच्चा की बावड़ी - हिंडौन सिटी (नागौर)
राजा जी की बावड़ी - बारा
नादर गोश्त की बावड़ी - बूंदी
रंडी की बावड़ी - बूंदी 
गुलाब की बावड़ी - बूंदी
सूर्य कुंड - चित्तौड़गढ़ 
मांझी की बावड़ी - आमेर
रसालू की बावड़ी - दौसा
बिनोता की बावड़ी - सादड़ी (भीलवाड़ा)
खातण की बावड़ी - चित्तौड़गढ़ 
पनराय के बावड़ी - जोधपुर
तापी की बावड़ी - जोधपुर
तुवर जी की बावड़ी - जोधपुर
नारायणी माता कुंड - अलवर
ताल वृक्ष बावड़ी - सरिस्का (अलवर)
अनारकली की बावड़ी - बूंदी
धाबाई जी या धाय कुंड - बूंदी
भोपन का कुआं - कैथून (कोटा)
नागर सागर कुंड - बूंदी 
गंगोद भेद कुंड - आहड़ (उदयपुर)
पन्ना मीना की बावड़ी - आमेर
झाझी रामपुरा का कुंड - बसवा (दौसा)
आलूदा का बूबानिया कुंड - लालसोट (दौसा)
चार घोड़ों की बावड़ी - जोबनेर भाई
बाई जी की बावड़ी - बनेड़ा (भीलवाड़ा)
गौमुख कुंड - चितौड़गढ़
लाभु जी कटला की बावड़ी - बीकानेर


तालाब

वर्षा जल संग्रहण हेतु खोदे के वृहद् जलकुंड को तालाब कहते हैं
राजस्थान में सर्वाधिक तालाब भीलवाड़ा जिले में है राजस्थान के प्रमुख तालाब और उनका स्थान निम्न प्रकार है
बाड़ी का तालाब -मेवाड़
पदम सागर तालाब - जोधपुर
फुल सागर - बूंदी
लाखो लाव तालाब - मारवाड़ मूंडवा (नागौर)
नवल सागर - बूंदी
ज्ञान तालाब - मारवाड़ मूंडवा (नागौर)
डग सागर तालाब - झालावाड़ तालाब 
सुंदरगढ़ तालाब - बूंदी
प्रार्थना का जोहड़ या रानी सागर तालाब - जोधपुर
गुलाब सागर - जोधपुर
समस्त तालाब - झुंझुनू
लंबी बावड़ी - धौलपुर
नवलखा तालाब बारां
पुष्कर सागर बारां
अजीत सागर - खेतड़ी (झुंझुनू)
माला की तलाई बारां
कल्याण सागर - जोधपुर

बुधवार, 2 दिसंबर 2020

उपभोक्ता, उपभोक्ता जाग्रति, उपभोक्ता संरक्षण की पृष्ठभूमि व सभी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

REET SST LEVEL2 उपभोक्ता, उपभोक्ता जाग्रति, उपभोक्ता संरक्षण की पृष्ठभूमि व सभी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम

 उपभोक्ता जागृति

उपभोक्ता :- कीमत देकर खरीदी गई वस्तु या सेवा जिसका प्रत्यक्ष तथा अंतिम उपभोग या उपभोग करने वाला व्यक्ति उत्तराधिकारी प्रतिनिधि उपभोक्ता कहलाता है।




उपभोक्ता जागृति

उपभोक्ता द्वारा खरीदी गई वस्तु या सेवा की गुणवत्ता से संबंधित समस्या की जानकारी प्रदान करना तथा उपभोक्ता अधिकार एवं उत्तरदायित्व की शिक्षा प्रदान करना उपभोक्ता जागृति कहलाता है।

उपभोक्ता संरक्षण की पृष्ठभूमि

★ 1 अप्रैल 1960 में लंदन में अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता परिषद का गठन हुआ। जिसमें विश्व के 120 देशों के 250 सदस्य शामिल हुए।
★ 15 मार्च 1962 को यूएसए के राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी द्वारा लोकप्रिय भाषण दिया गया। इसलिए 15 मार्च को अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस मनाया जाता है।
★ 9 अप्रैल 1985 को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा द्वारा उपभोक्ता संरक्षण हेतु मार्गदर्शन प्रारूप प्रस्तुत किया गया।
★ 1904 में उपभोक्ता जागरूकता आंदोलन मुंबई (महाराष्ट्र) में चलाया गया।
★ 1949 में तमिलनाडु में वहां के मुख्यमंत्री सी. राजगोपालाचारी द्वारा उपभोक्ता परिषद की स्थापना की गई।
★ 1 जून 1970 को उपभोक्ता के लिए एकाधिकार, अनैतिक व अवैध व्यापार अधिनियम लागू किया गया।

★ 24 दिसंबर 1986 को प्रधानमंत्री राजीव गांधी द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ के मार्गदर्शन प्रारूप के अनुसार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पारित किया गया। ●अतः 24 दिसंबर को राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाया जाता है●

24 दिसंबर 2000 को प्रथम राष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण दिवस मनाया गया।
★ 1987 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 जम्मू कश्मीर कश्मीर को छोड़कर संपूर्ण भारत में लागू हुआ।
★ 26 जुलाई 1988 को राजस्थान में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 लागू किया गया।


उपभोक्ता के हितों के संरक्षण हेतु बनाए गए अधिनियम

1. खाद्य पदार्थ मिलावट निरोधक अधिनियम 1954
2. अनिवार्य वस्तु अधिनियम 1955
3.भार एवं माप मापन अधिनियम 1976
4. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986
5. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम संशोधन 1993 (संसोधन)
6.उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2002(संसोधन)
7.उपभोक्ता संरक्षण विधेयक 2018


उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में 4 अध्याय व 31 धाराएं 31 हैं।
अध्याय 1 में अधिनियम की परिभाषा दी गई है जिसमें धारा 1 से 3 तक  को शामिल किया गया है
अध्याय 2 में उपभोक्ता संरक्षण परिषद का जिक्र किया गया है जिसमें धारा 4 से 8b को शामिल  किया गया है
अध्याय 3 में उपभोक्ता विवाद निवारण का विश्लेषण किया गया है जिसमें धारा 9 से 27a को शामिल किया गया है
अध्याय 4 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की विधि का वर्णन है जिसमें धारा 28 से 31 शामिल है

 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की प्रमुख धाराएं

धारा 1 - अधिनियम का नाम क्षेत्र लागू होने की तिथि
धारा 2 - शिकायतकर्ता की परिभाषाएं  
जिसमें उपभोक्ता स्वामी या उपभोक्ता की मृत्यु के पश्चात उसका उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि यवभारतीय कंपनी अधिनियम 1956 के तहत पंजीकृत उपभोक्ता संस्था या केंद्र या राज्य सरकार शिकायतकर्ता हो सकते हैं
धारा 4 - केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण परिषद इसका अध्यक्ष उपभोक्ता मामले मंत्री (केंद्र सरकार) इसमें सदस्य 150 होते है जिसमें सरकारी तथा गैर सरकारी शामिल होते हैं इसकी बैठक है वर्ष में एक बार आयोजित करना अनिवार्य है
धारा 7 - राज्य उपभोक्ता संरक्षण परिषद इसका अध्यक्ष राज्य सरकार का उपभोक्ता मामले मंत्री होता है इसमें सदस्य 150 सरकारी व गैर सरकारी दोनों और इसकी वर्ष में दो बार बैठकें आयोजित करनी आवश्यक है
धारा 8 - उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2002 के तहत जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में राज्य सरकार द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम का गठन
धारा 12 - शिकायत की प्रक्रिया
धारा 13 - शिकायत दर्ज करने के बाद की प्रक्रिया
धारा 16 - झूठे तथा भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध कार्यवाही या दंड का प्रावधान
धारा 27 - उपभोक्ता न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने पर दंड का प्रावधान


उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ता को प्रदान किए गए अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ता को कौन से अधिकार प्रदान किए गए हैं
1.सूचना का अधिकार
2.निर्णय का अधिकार
3. चयन का अधिकार
4. सुरक्षा का अधिकार
5. क्षतिपूर्ति का अधिकार
6.शिक्षा का अधिकार


अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता को प्रदान किए गए 8 अधिकार

1.क्षतिपूर्ति का अधिकार
2. स्वच्छ वातावरण का अधिकार
3.भोजन वस्त्र आवास का अधिकार
4. सुरक्षा का अधिकार
5. चयन का अधिकार
6. सुनवाई का अधिकार
7. सूचना का अधिकार
8 उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2018

● उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2018 में ऑनलाइन तथा ऑफलाइन दोनों प्रकार के व्यापार को शामिल किया गया है जबकि उपभोक्ता अधिनियम 1986 में ऑनलाइन व्यापार शामिल नहीं था।
● उपभोक्ता को झूठे तथा भ्रामक विज्ञापनों के विरुद्ध शिकायत करने हेतु केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम का गठन किया गया जिसका उल्लेख 1986 में नहीं था।


उपभोक्ता हितों के संरक्षण हेतु त्रिस्तरीय संरचना

(1)राष्ट्रीय उपभोक्ता मंच इसमें न्यूनतम सदस्य चार वे एक एक वे एक एक अध्यक्ष होगा अध्यक्ष की न्यूनतम आयु 35 वर्ष व अधिकतम आयु 70 वर्ष होगी। इसके विरुद्ध अपील की अवधि 30 दिन होगी। अध्यक्ष की योग्यता सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के सम्मान होगी। इसकी राशि सीमा 1 करोड से अधिक 1986 के अंतर्गत जिसको 2018 के अधिनियम के तहत 10 करोड से अधिक तक कर दी गई है।
(2)राज्य उपभोक्ता मंच इसमें एक अध्यक्ष व तीन न्यूनतम सदस्य होंगे। अध्यक्ष की न्यूनतम आयु 35 वर्ष व अधिकतम आयु 67 वर्ष। अपील की अवधि 30 दिन। अध्यक्ष की योग्यता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान। इसमें राशि सीमा  1986 अधिनियम के तहत एक करोड़ थी जिसको 2018 के अधिनियम के तहत एक करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ तक कर दी गई
(3)जिला उपभोक्ता मंच इसमें एक अध्यक्ष व दो न्यूनतम सदस्य होंगे। अध्यक्ष की न्यूनतम आयु 35 वर्ष व अधिकतम आयु 65 वर्ष रहेगी। अपील की अवधि 30 दिन। अध्यक्ष की योग्यता जिला न्यायाधीश के समान। राशि सीमा 1986 अधिनियम के तहत दस लाख थी जिसको 2018 के अधिनियम के तहत बढ़ाकर एक करोड़ तक कर दी गई।
● राष्ट्रीय उपभोक्ता मंच में वर्तमान में एक अध्यक्ष व आठ सदस्य
● राजस्थान उपभोक्ता मंच में एक अध्यक्ष व आठ सदस्य वर्तमान में प्रावधान है
● तीनों स्तर पर एक महिला सदस्य का होना अनिवार्य है
● सदस्यों की योग्यता में उनका स्नातक होना आवश्यक है
● जिला उपभोक्ता मंच के निर्णय के विरुद्ध राज्य उपभोक्ता मंच में अपील, राज्य उपभोक्ता मंच के निर्णय के विरुद्ध राष्ट्रीय उपभोक्ता मंच में अपील, तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता मंच के निर्णय के विरूद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती हैं।
● उपभोक्ता मंच त्रिस्तरीय है  यह एक वैधानिक संस्था है
★ राजस्थान में कुल 37 जिला उपभोक्ता मंच है जिसमें जोधपुर में दो जयपुर में 4 तथा प्रत्येक राज्य में 31 जिला उपभोक्ता मंच का  प्रावधान किया गया है


1 अप्रैल 2010 से अपील के लिए निर्धारित की गई शुल्क
● ₹

 RS100000 से कम बिल राशि होने पर ₹100 शुल्क
● एक लाख से ₹200000 तक बिल राशि होने पर ₹200
● 200000 से 500000 तक बिल राशि होने पर ₹300
● 500000 से 1000000 दिल राशि होने पर ₹400
● 10 लाख से अधिक बिल राशि होने पर ₹500 देय करनी होती है

★ कर सेवा के विरुद्ध के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है तथा शुल्क सेवा के विरुद्ध अपील की जा सकती है

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FOR REET S ST LEVEL2 2020 जैव मंडल, खाद्य श्रृंखला व खाद्य जाल

 जैव मंडल

जैव मंडल किसे कहते हैं ?
जलमंडल स्थलमंडल वायु मंडल का वह संक्रमण क्षेत्र जहाँ आक्सीजन की उपस्थिति के कारण जीवन पाया जाता है जैव मंडल कहलाता है।

जैव मंडल के दो घटक
(1)जैविक घटक
जैविक घटक में स्वपोषी जीव जैसे
1 उत्पादक व  
2 परपोषी  जैसे प्राथमिक उपभोक्ता- 

इसके अंतर्गत उपभोक्ता को तीन भागों में विभाजित किया जाता है
प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाकारी)
द्वितीयक उपभोक्ता  (मांसाहारी)
तृतीयक उपभोक्ता  (सर्वाहारी) 


(2) अजैविक घटक
इसके अंतर्गत जल वायु मृदा आते हैं

परिस्थिति तंत्र किसे कहते हैं ?
जीवो की पर्यावरण के साथ अन्योन्य क्रिया को पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं

★पारिस्थितिकी तंत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टेंसले ने किया था
★पारिस्थितिकी तंत्र के पिता ओडम को माना जाता है
★भारत में पारिस्थितिकी तंत्र के पिता डॉ राम देव मिश्रा को माना जाता है
★पारिस्थितिकी शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अर्नेस्ट हैकल ने किया था



जैविक घटक

जैविक घटकों को तीन भागों में विभाजित किया जाता है
(1)उत्पादक अर्थात स्वपोषी जीव
उत्पादक स्वपोषी जीव अरे पेड़ पौधे आदि प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार करते हैं इसलिए हरे पेड़ पौधों को स्वपोषी का जाता है
(2)उपभोक्ता अर्थात परपोषी जीव
उपभोक्ता तीन प्रकार के होते हैं
1 प्राथमिक उपभोक्ता प्रकृति की वे जीव जो भोजन के लिए प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों पर निर्भर होते हैं जैसे गाय भैंस बकरी हिरण खरगोश व सभी शाकाहारी जीव
2 द्वितीयक उपभोक्ता अर्थात मांसाहारी जीव प्रकृति के वे जीव जो भोजन के लिए प्राथमिक उपभोक्ता पर निर्भर होते हैं जैसे शेर चीता भेड़िया इत्यादि सभी मांसाहारी जीव
3 तृतीयक उपभोक्ता अर्थात सर्वाहारी जीव
वे जीव जो अपने भोजन के लिए उत्पादक प्राथमिक व द्वितीयक उपभोक्ता पर निर्भर रहते हैं जैसे मनुष्य बिल्ली कुत्ता चींटी गौरैया

(3)अपघटक अर्थात जीवाणु  
अपघटक पारिस्थितिकी तंत्र का सबसे महत्वपूर्ण घटक है यह जीवन जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक पदार्थों में तोड़ देते हैं प्रमुख अपघटक जीवाणु तथा कवक को माना तथा कवक को माना तथा कवक को माना को माना जाता है।


खाद्य श्रृंखला

पारिस्थितिकी तंत्र में जीवो में एक दूसरे दूसरे पर निर्भरता पाई जाती है जिससे विभिन्न पोषण स्तनों को जोड़ने पर एक श्रृंखला का निर्माण होता है उसे खाद्य श्रृंखला कहते हैं
खाद्य श्रंखला के तीन प्रकार
(1)चारण खाद्य श्रृंखला
इसमें उत्पादक से शीर्ष उपभोक्ता की ओर जाने पर जीवो में कमी पाई जाती है जैसे घास हुए सांप मोर बाज सांप मोर बाज

(2)परजीवी खाद्य श्रंखला
इस खाद्य श्रंखला में उत्पादक से शीर्ष उपभोक्ता की ओर जाने पर जीवों की संख्या में वृद्धि होती है तथा जीवो का आकार छोटा होता जाता है जैसे पेड़ चिड़िया जू जीवाणु या विषाणु

(3)अपघटक खाद्य श्रंखला 

यह परिस्थिति की श्रंखला की सबसे छोटी खाद्य श्रंखला खाद्य श्रंखला होती है यह मृत कार्बनिक पदार्थों से शुरू होकर अपघटक होकर अपघटक पर समाप्त हो जाती हैं

खाद्य जाल

एक से अधिक पोषण  स्तरों से भोजन की प्राप्ति होना या छोटी-छोटी खाद्य श्रंखला का मिलकर एक जाल का निर्माण करना खाद्य जाल कहलाता है। खाद्य जाल जितना अधिक जटिल होगा पारिस्थितिकी तंत्र उतना ही स्थाई होगा।
★एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण स्तर में केवल 10 परसेंट ऊर्जा का स्थानांतरण होता है।
★एक पोषण स्तर से दूसरे पोषण में 10 परसेंट ऊर्जा का ह्रास होता है इसे ऊर्जा का 10 परसेंट का नियम कहा जाता है।